भले ही हम आज के आधुनिक व भौतिकवादी युग मे चन्द्रमा पर बसने की तैयारियां कर रहे हो या दूरसंचार के संसाधनों में कांतिकारी परिवर्तन ला कर 2 जी से 5 जी तक आमदमी कि पहुंच बना चुके हो लेकिन उत्तराखण्ड के दूरस्थ क्षेत्रो में आज भी सड़क ,स्वास्थ्य, शिक्षा,आम आदमी से कोसो दूर दिखती नजर आ रही है ।आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रो में स्वास्थ्य सेवाओं व सड़क के अभाव में लोगो को मिलो पैदल चल कर अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है ।लेकिन इन 22 सालो के उत्तराखण्ड में दूरस्थ ग्रामीण आंचलों की सुध लेनी की निष्ठा किसी भी सरकार में दिखाई नही दे रही है ।जिस कारण आज संसाधनों के अभाव में गांव के गांव खाली होते नजर आ रहे है ।
आज हम बात कर रहे है चमोली जनपद के जोशीमठ विकास खंड के क्षेत्र डुमक गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में दो दिनों तक प्रसव पीड़ा से तड़पती रही महिला को 18 किमी पैदल चलकर किसी तरह से जिला मुख्यालय गोपेश्वर पहुंचाया गया। जहां प्रसव पीड़ा महिला ने नवजात शिशु का जन्म दिया । बताया कि जच्चा बच्चा दोनों स्वास्थ्य हैं।
पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति सरकार कितनी गंभीर है आए दिन पहाड़ में हो रही घटनाएं सरकार के पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल रही है। दूरस्थ गांव डुमक की दीपक सिंह पत्नी दीक्षा देवी की सोमवार की रात्रि से प्रसव पीड़ा शुरु हो गई थी। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के चलते मंगलवार को पूरे दिन घर पर ही महिला प्रसव पीड़ा से तड़पती रही जिस पर ग्रामीणों द्वारा प्रसव पीड़ा महिला की जब हालात गंभीर दिखी तो गुरुवार की सुबह गांव के युवाओं व बुजुर्गों द्वारा गांव में आपदा विभाग द्वारा 2013 में दिया गया स्ट्रेचर जो कि जीर्णशीर्ण हालत में था ,
जिस पर ग्रामीणों ने आनन फानन में स्ट्रेचर को किसी तरह से डंडियों व रस्सियों की मदद से बांधकर प्रसव पीड़ा महिला को 18 किमी पैदल चलकर कुजौं मैकोट गांव में पहुंचाया ,जहां से 14 किमी सड़क मार्ग से प्रसव पीड़ा महिला को देर सांय तक जिला चिकित्सालय गोपेश्वर लाया गया ।जहां प्रसव पीड़ा महिला ने नवजात शिशु को जन्म दिया । डुमक गांव के यशवंत सिंह, सूरज सिंह भंड़ारी, बच्चन सिंह नेगी, नरेंद्र सिंह ,योगम्बर सिंह का कहना है कि गांव में आए दिन बीमार , प्रसव पीड़ा से पीड़ित ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाओं व सड़क के अभाव में आए दिन भारी मुसीबतों से गुजरना पड़ता है। गांव में सड़क व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार एक ओर जहां पहाड़ों से पलायन रोकने व बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करती है , वहीं पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।