साढ़े 6करोड़ की लागत के स्नो मेकिंग सिस्टम सफेद हाथी हो रहा साबित,

 

सोनू उनियाल
औली,जोशीमठ ।सैफ विंटर गेम्स 2010/11 के दौरान औली की नन्दा देवी इंटर नेशनल स्की स्लोप की ढलानों में कृत्रिम बर्फ बनाने के लिए राज्य सरकार ने यूरोपीय स्नो गन और आर्टिफिशियल स्नो मेकिंग सिस्टम स्थापित किया था। इस उद्देश्य से कि यदि शीतकालीन खेलों के दौरान प्राकृतिक बर्फबारी न हो तो इन कृत्रिम बर्फ बनाने वाली स्नो गन मशीनों से बर्फ बनाई जा सके, लेकिन एक दशक से अधिक का समय बीत गया लेकिन यहां औली की ढलानों पर ऑटो मोड़ में लगे विदेशी आर्टिफिशिल स्नो मेकिंग सिस्टम को आजतक बर्फ बनाने के लिए उचित तापमान नहीं मिल पाया है,अब ये विदेशी मशीनें कबाड़ साबित हो रही है,जबकि औली सहित अन्य उच्च हिमालय छेत्र में इस सीजन की नैचुरल स्नो फाल हो गई है बावजूद इसके इन दोयम दर्जे के स्नो गनो कृत्रिम बर्फ के फाहे बनने दुर्लभ हो गए है, पूरे क्षेत्र में तापमान माइनस से नीचे जा रहा है लेकिन औली में लगी इन गूंगी बहरी कबाड़ स्नों गनों को न जानें किस तापमान का इंतजार है,12 वर्षों से औली की ढलानों को कृत्रिम बर्फबारी का इंतजार है लेकिन सैफ विंटर गेम्स के दौरान लगाई गई ये स्नो गन मशीनें औली की ढलानों पर अब महज साढ़े 6 करोड़ की लागत के खरीदे सफेद हाथी साबित हो रही है, जबकि प्रदेश सरकार लगातर हर साल इनके मेंटनेंस के नाम पर बेफिजूल विदेशी टेक्नीशियनों को लाखों रुपए बर्बाद कर रही है,औली की मेजबानी में 2023 फरवरी में इंटरनेशनल इंडियन हिमालय स्कीइंग FIS कप होना है ऐसे में बर्फ की कम उपलब्धता में इन आर्टिफिशियल स्नो मेकिंग सिस्टम के भरोसे कैसे ये खेल हो पाएंगे,यहां स्लोप के दोनों ओर छह करोड़ 50 लाख की लागत से 18 स्नो गन और चार स्नो मोबाइल स्थापित किए गए,ताकि विंटर गेम्स के आयोजन के दौरान प्राकृतिक बर्फबारी पर निर्भरता कम हो सके, लेकिन आज ये करोड़ों की मशीनें 12 सालों से औली की इन ढलानों पर खामोश खड़ी जंग खा रही है और सिर्फ पर्यटकों के लिए सेल्फी लेने तक सिमट कर रह गया ये साढ़े 6 करोड़ का आर्टिफिशियल स्नो मेकिंग सिस्टम, प्रदेश सरकार औली के चौमुखी विकास के लिए युद्ध स्तर पर प्रयासरत है लेकिन औली में करोड़ों की लागत के लगे इन स्नो मेकिंग सिस्टम सहित ग्लास हाऊस,ओपन एयर आईस स्केटिंग रिंक,की बदहाली का कसूर वार कौन है।

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