पिथौरागढ़ / मुनस्यारी।
19 वीं शताब्दी के महान अन्वेषक पंडित नैन सिंह रावत कि आज जयंती है। अपनी जान को जोखिम में डालकर पंडित नैन सिंह रावत ने तिब्बत का सर्वे कर दुनिया को तिब्बत के बारे में जानने का अवसर दिया। पंडित नैन सिंह रावत के अन्वेषण तक तिब्बत के बारे में कोई भी बाहर वाला किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं रखता था। 21 अक्टूबर 1830 को पैदा हुए पंडित रावत ने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। भारत सरकार ने पंडित के नाम पर डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मान दिया।
पंडित में सिंह रावत के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी देने के लिए इस इस वर्ष से मुनस्यारी में उनकी जयंती मनाई जा रही है।
19वीं शताब्दी में पैदा हुए महान अन्वेषकों में से पंडित नैन सिंह रावत का नाम एक है।
इनके अन्वेषण की ख्याति को देखते हुए इन्हें “द पंडित” के नाम से संबोधित किया गया। परतंत्र भारतीय मूल के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें
भू- वैज्ञानिक कार्य के लिए रॉयल ज्योग्रेफिकल सोसाइटी द्वारा उन्हें प्रथम विक्टोरिया पदक से विभूषित भी किया गया।
विकासखंड मुनस्यारी के ग्राम पंचायत बसंतकोट के भटकूड़ा गांव में 21 अक्टूबर 1830 को पंडित नैन सिंह रावत का जन्म हुआ।
इनके पिताजी का नाम लाटा था। पंडित नैन सिंह रावत के चचेरे भाई मान सिंह रावत ने भी इनके साथ अन्वेषण का कार्य किया।
कुशाग्र बुद्धि के होने के कारण पंडित बंधुओ ने 1855 से 1856 में श्लाघ इट वाइट बांधुओं के साथ दुभाषिये और सर्वेक्षक के रूप में तुर्किस्तान की यात्रा की।
तिब्बती भाषा का ज्ञान तथा कार्य कुशलता से प्रभावित होकर जर्मन बंधु उन्हें अपने साथ यूरोप ले जाना चाहते थे, लेकिन पहाड़ से प्रेम तथा चचेरे भाई मान सिंह रावत के विरोध के कारण दोनों भाइयों को रावलपिंडी से वापस लौटना पड़ा।
सन 1863 में इन्हें चचेरा भाई मान सिंह रावत के साथ देहरादून बुलाया गया।
सुपरिटेंडेंट कर्नल जे.टी. वाकर तथा ग्रेट ट्रिगोनोमैट्रिकल सर्वे में एक अन्वेषण के रूप में नियुक्ति किया गया।
भारतीय सीमा के बाहरी क्षेत्र में कार्य करने के लिए पंडित बंधुओ को टोपोग्रेफिकल आवजर्वेशन का प्रशिक्षण कार्य दिया गया।
तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान बाहर वालों को नहीं था।
यूरोपीय जगत को तिब्बत में प्रवेश प्रतिबंधित होने के कारण मार्च 1865 को दोनों पंडित बंधुओ को नेपाल होते हुए लहासा के सर्वेक्षण हेतु भेजा गया।
पंडित के चचेरे भाई मान सिंह रावत को मध्य में ही अपनी यात्रा स्थगित कर स्वदेश लौटना पड़ा, लेकिन पंडित नैन सिंह रावत ने एक लद्दाखी की वेश में दावा नमग्यल के नाम से नौकर बनकर तिब्बत में प्रवेश करने पर सफल हो गया।
बुशहरी का वेश बनाकर लद्दाख के व्यापारी ल्होपच्याक के साथ 29 अक्टूबर 1865 को शिगात्से पहुंचे। केवल लद्दाखी और बुशहरी ही स्वतंत्र रूप से संपूर्ण तिब्बत में आवागमन कर सकते थे।
शिगात्से में पंडित नैन सिंह रावत टासी लाम्बो गोम्पा के रिंपोचे पंचेम लामा के दर्शन करने गये।उन्हें यह आशंका थी कि यह पवित्र पुरुष उनके गुप्त रहस्य को जान लेगा। परंतु यह जानकर आश्चर्य हुए कि पवित्र पद पर मात्र 11 वर्षीय बालक पदासीन है, जो प्रत्येक दर्शनार्थियों को प्राय: केवल एक ही प्रकार के तीन प्रश्न पूछ रहा है।
शिगात्से में दो माह तक सर्वेक्षण कार्य करने के पश्चात 25 दिसंबर को हुए एक औद्योगिक नगर ग्यानत्से पहुंचे। 10 जनवरी 1866 को पंडित नैन सिंह ने ल्हासा पहुंचकर दो कमरे का एक मकान किराए पर लिया। उसके बाद आवजर्वेशन का कार्य प्रारंभ किया।
100 दिन तक ल्हासा में रहकर वहां की भौगोलिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने की पश्चात उसी लद्दाखी व्यापारी के साथ ल्हास लद्दाख मार्ग का सर्वेक्षण करते हुए त्रादाम पहुंचे।
मार्ग व्यय की कमी के कारण उन्हें अपनी घड़ी भी बेचनी पड़ी।
21 जून 1866 को ऊंटा धुरा पार कर पंडित नैन सिंह रावत मिलम गांव पहुंचे और यहां से देहरादून वापस चले गए।
पंडित नैन सिंह रावत ने अपनी इस यात्रा द्वारा काठमांडू- ल्हास- मानसरोवर तक की 1200 मील लंबी दूरी का सर्वेक्षण तथा 21 स्थानों पर अक्षांश और 33 स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई ज्ञात कर विश्व के लिए ऐतिहासिक कार्य किया।
साथ ही उन क्षेत्रों की रोचक तथा ज्ञानवर्धक वर्णन अपनी डायरी में अंकित किया।
संपूर्ण तथ्यों का सारांश कर्नल मान्टोगोमरी द्वारा सोसाइटी के जनरल में 38 वें खंड में किया गया है। इनकी इस महान यात्रा से प्राप्त उपलब्धियां के उपलक्ष में 1868 में सोसाइटी ने उन्हें एक स्वर्ण घड़ी घड़ी प्रदान की।
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मुनस्यारी।
जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने बताया कि पहली बार पंडित नैन सिंह रावत की मातृभूमि मुनस्यारी में उनकी जयंती मनाई जा रही है।
उन्होंने पंडित नैन सिंह के जन्म स्थान भटकूड़ा गांव में एक स्मारक तथा संग्रहालय बनाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि 21 अक्टूबर को उत्तराखंड में राजकीय दिवस घोषित करते हुए प्रत्येक सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में पंडित नैन सिंह रावत की जयंती मनाई जाने का आदेश जारी करने के लिए सरकार से बातचीत की जाएगी।
उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी पंडित नैन सिंह रावत के बारे में जानकारी रखे। इसके लिए प्रतिवर्ष उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।