बद्री-केदार मंदिर समिति और तिरूपति बालाजी के बीच होने वाले एमओयू से तीर्थ पुरोहित आक्रोशित तीर्थ पुरोहितों ने कहा, तिरूपति बालाजी मंदिर और केदारनाथ धाम में जमीन आसमान का अंतर पहले सरकार केदारनाथ मंदिर के पीछे हो रहे हिमस्खलन का करे समाधान केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य, भविष्य के लिए कोई बड़ा खतरा

रुद्रप्रयाग। तिरूपति बाला जी की तर्ज पर केदारनाथ धाम में व्यवस्थाएं बनाये जाने को लेकर बद्री-केदार मंदिर समिति व तिरूपति बालाजी ट्रस्ट के बीच होने वाले एमओयू से पहले तीर्थ पुरोहित समाज में आक्रोश पैदा हो गया है। तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि तिरूपति बालाजी और केदारनाथ मंदिर में बड़ा अंतर है। जहां केदारनाथ मंदिर 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है, वहीं तिरूपति बालाजी मैदानी क्षेत्र में स्थापित है। ऐसे में तिरूपति बालाजी एक्ट को केदारनाथ धाम में लागू किये जाने का तेजी से विरोध किया जायेगा।

बता दें कि ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग से विश्व विख्यात भगवान केदारनाथ धाम में सुविधाओं को लेकर आंध्र प्रदेश के तिरूपति बालाजी ट्रस्ट व बद्री-केदार मंदिर समिति के बीच एमओयू की खबरे आने के बाद चारधामों के तीर्थ पुरोहित समाज में प्रदेश सरकार के खिलाफ आक्रोश बन गया है। सात अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री कोट्टू सत्यनारायण उत्तराखण्ड आयेंगे और इस दिन वे केदारनाथ धाम भी जायंेगे। इस दौरान वे बद्री-केदार मंदिर समिति और तिरूपति बालाजी ट्रस्ट के बीच होने वाले एमओयू में शामिल रहेंगे। ऐसे में तीर्थ पुरोहितों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने साफ शब्दों में कहा कि जिस तरह पहले देवस्थानम् बोर्ड का विरोध किया गया। ठीक उसी तरह तिरूपति बालाजी ट्रस्ट की व्यवस्थाओं का विरोध भी किया जायेगा।
केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी कहा कि तिरूपति बालाजी का एक्ट केदारनाथ धाम की यात्रा व्यवस्थाओं में लागू किया जाना, सही नहीं है। तिरूपति और केदारनाथ धाम में जमीन आसमान का अंतर है। तिरूपति का एक्ट केदारनाथ से मेल नहीं खायेगा। इसका देवस्थानम बोर्ड की भांति विरोध किया जायेगा।

 

केदारनाथ धाम के पीछे हिमस्खलन हो रहा है। इस पर सरकार और काबीना मंत्रियों का कोई ध्यान नहीं है। पर्यटन मंत्री हर बार एक नई स्कीम लेकर आ जाते हैं। कभी कहते हैं चारधामों में ये किया जायेगा तो कभी कहतें हैं वो किया जायेगा। तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य किये जा रहे हैं, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यो के बाद से केदारनाथ धाम का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है। किसी भी कार्य को करने से पहले कोई भी विचार-विमर्श तीर्थ पुरोहितों के साथ नहीं किया जा रहा है। बिना सहमति से कोई भी कार्य करना, विनाशकारी साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि जैसे इन दिनों केदारनाथ मंदिर के पीछे हिमस्खलन हो रहा है, यह भविष्य के लिए कोई बड़ा खतरे का इशारा है। केदारसभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला ने कहा कि चारधामों में तिरूपति बालाजी ट्रस्ट के साथ होने वाले एमओयू का विरोध किया जायेगा। सरकार कोई भी कार्य करने से पहले तीर्थ पुरोहितों के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं कर रही है। केदारनाथ धाम में सीधे कार्य शुरू किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि तिरूपति बालाजी एक्ट का चारधामों के तीर्थ पुरोहित पुरजोर विरोध करेंगे। बिना तीर्थ पुरोहितों की सहमति से प्रदेश सरकार कोई भी कार्य धाम में लागू नहीं कर सकती है।
वहीं तिरूपति बालाजी और बद्री-केदार मंदिर समिति के साथ होने वाले एमओयू के खिलाफ कांग्रेस प्रदेश संगठन भी तीर्थ पुरोहितों के साथ खड़ा नजर आ रहा है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सूरज नेगी ने कहा कि तिरूपति बालाजी और केदारनाथ धाम की भौगोलिक परिस्थितियां विषम हैं। जहां तिरूपति बालाजी मैदानी क्षेत्र में स्थापित हैं, वहीं केदारनाथ धाम 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जो कि बिलकुल विपरित परिस्थितियोें में है। सरकार के मंत्री द्वारा सरासर गुमराह करने की बात कही जा रही है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु 18 किमी की पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़कर केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। ऐसे में उन पर बाहरी नियम कानून लगाना, उचित नहीं होगा। इसमें सभी पंडा पुरोहित समाज एवं सामाजिक संगठनों के साथ बैठक कर उत्तराखण्ड की संस्कृति के अनुरूप ही फैसला लिया जाना चाहिए। क्योंकि पूर्व में भी वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर केदारनाथ धाम की यात्रा व्यवस्थाओं को बनाये जाने की बात कही गयी थी, जो तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बाद लागू नहीं हो पाया। अब फिर से सरकार ने तिरूपति बालाजी की व्यवस्थाओं के नाम पर नया सिगूफा छेड़ दिया है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम की यात्रा धाम के पारम्परिक नियमों के अनुरूप ही होनी चाहिए, जो पहाड़ की संस्कृति से मेल खाती हो।

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