उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों ओर विकास में लगातार पिछडने के बाद,लंबे आंदोलनों और शहादतों के बाद उत्तराखंड का निर्माण हुआ।जिसका असल मकसद यही था कि मूलभूत सुविधाओं की मांगे आसानी से हुक्मरानों के कानों तक पहुंचाई जा सके।लेकिन 24साल बीतने के बावजूद हालत बदलते नहीं दिखायी दे रहे हैं।जहां ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के सीमांत खंसर क्षेत्र में चल रहे सड़क आंदोलन की सूचना मुख्यमंत्री तक पहुंचने में ही 16दिन लग गये।ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से अस्थायी राजधानी देहरादून के बीच के जिस 300किलोमीटर के सफर को तय करने में 8घंटे का समय लगता है,वहीं डिजिटल हो चुकी दुनिया में आंदोलन की सूचना को मुख्यमंत्री तक पहुंचने में ही 384 घंटे लग गए।कुछ दिनों पूर्व मुख्यमंत्री के चमोली-गौचर के कार्यक्रम में मौजूदगी के बावजूद, स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीणों के भूख हड़ताल की चर्चा तक न हो सकी।अब मामले में देर से ही सही भाजपा मीडिया विभाग के सदस्य सतीश लखेडा ने मुख्यमंत्री से मिलकर ग्रामीणों के आंदोलन की जानकारी दी है।जिस पर मुख्यमंत्री द्वारा तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।लेकिन अधिकारियों ओर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के रवैये से नाराज ग्रामीण सड़क की वन भूमि संबंधि फाइल नोडल स्तर पर स्वीकृत किए जाने तक आंदोलन समाप्त करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं।जनपद चमोली के गैरसैण व थराली विकासखंडों के 150गांवों की 50हजार की आबादी के बीच 150किलोमीटर दूरी कम कर सकने वाली,प्रस्तावित विनायकधार-कस्वीनगर 5किलोमीटर की सड़क निर्माण के लिए 50वर्षों से इंतजार कर रही जनता फिलहाल स्थानीय स्तर के जनप्रतिनिधियों के साथ ही अधिकारियों का विश्वास करने को तैयार नहीं हैं।मामले का मुख्यमंत्री द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद जल्द समस्या के समाधान की उम्मीद जतायी जा रही है। जिससे कड़ाके की ठंड में अपने परिवार से दूर भूख हड़ताल पर बैठे ग्रामीण अपनी सामान्य दिनचर्या के लिए घर की और लौट सकें।

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