वैदिक मंत्रों के साथ किया गया वटुक छात्रों का (यज्ञोपवीत) उपनयन संस्कार|

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रुद्रप्रयाग- श्री 108 स्वामी सच्चिदानंद वेदभवन संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में संस्कृत सप्ताह के मौके पर उपनयन संस्कार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव एवं संस्कृत निदेशालाय के निदेशक शिव प्रसाद खाली ने प्रतिभाग किया। इस मौके पर 40 संस्कृत वटुक छात्रों का श्रावणी उपनयन संस्कार किया गया।

 

संस्कृत निदेशालय के निदेशक शिव प्रसाद खाली ने किया प्रतिभाग

मुख्यालय स्थित संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में आयोजित श्रावणी उपनयन संस्कार से पूर्व मुख्य अतिथि का वैदिक मंत्रों के साथ स्वागत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य चंद्रशेखर पुरोहित एवं सभी संस्कृत वटुक छात्रों के अभिभावकों ने की। संस्कृत निदेशालय के निदेशक द्वारा वैदिक मंत्रोचार और परम्परानुसार 40 छात्रों का श्रावणी उपनयन संस्कार यज्ञोपवीत दान किया गया।

उनके द्वारा सभी यज्ञोपवीत करने वाले छात्रों को दंड धारण करवाया गया साथ ही पवित्र गायत्री मंत्र के साथ के साथ दीक्षा दी गई दी गई। इस मौके पर निदेशक शिव प्रसाद खाली ने कहा कि उपनयन हमारी संस्कृत की पौराणिक परम्परा है। श्रावणी उपनयन के मौके पर सभी लोगों को अपने बच्चों का उपनयन कराना चाहिए। संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग आज भी इस परम्परा को बखूबी निभा रहा है। व्याकरण विभागाध्यक्ष जय प्रकाश गौड़ ने बताया कि संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में बीते 75 सालों से यह पर्व मनाया जा रहा है।

महाविद्यालय के प्राचार्य डा. भानुप्रकाश देवली ने कहा कि हिन्दू धर्म में श्रावणी उपनयन का वैदिक और पौराणिक महत्व है। इस परम्परा को विशेष रूप से मनाने के लिए लोग वर्षो से इंतजार करते रहते हैं। उन्होने कहा कि ब्राह्मण का 8 वर्ष में यज्ञोपवित किया जाना चाहिए जबकि क्षत्रिय का 11 वर्ष और वैश्या का 12 वर्ष में उपनयन हो जाना चाहिए। यह ऋषि परम्परा को भी जीवित रखने का पर्व है।

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