रुद्रपुर उधम सिंह नगर: उत्तराखंड में भर्ती घोटालों की लंबी फेहरिस्त है। ताजा मामला कॉपरेटिव बैंक में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती में धांधली का सामने आया है। यहां अपनों को मलाई खिलाने के फेर में अधिकारियों ने जमकर गड़बड़ी की है।
सूत्रों की माने तो भर्ती में अफसरों ने अपने हिसाब से बदलाव कर दिए, इसके साथ ही तमाम अभ्यर्थियों के नंबर बदल दिए गए। इस खेल में खेल प्रमाण पत्रों पर खूब नंबर लुटाए गए और यह सब धामी 2 सरकार से पहले आचार संहिता लगने के बाद मौके का फायदा उठाकर किया गया। गड़बड़ी की शिकायतें सरकार को मिली तो दोबारा सहकारिता का जिम्मा मिलने पर धन सिंह रावत ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे।
उपनिबंधक नीरज बेलवाल और मान सिंह सैनी को जांच की जिम्मेदारी दी गई थी। इन दोनों अधिकारियों ने अब अपनी रिपोर्ट सहकारिता सचिव पुरुषोत्तम को सौंप दी है।
ऊधमसिंह नगर के साथ ही देहरादून पिथौरागढ़ की जांच भी की गई है। ऊधमसिंह नगर में बड़ी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। बैंकों ने अपने स्तर से भर्ती प्रक्रिया के मानकों में बदलाव तक कर दिया। नियम था कि स्कूल, कॉलेज व डिग्री कॉलेज में पाठ्यक्रम के अतिरिक्त संचालित गतिविधियों के भी नंबर दिए जाएंगे, लेकिन सिर्फ खेलकूद प्रमाण पत्र को मानते हुए ही नंबर दिए गए जबकि एनसीसी, एनएसएस समेत कई अन्य गतिविधियों के प्रमाण पत्र को शामिल नहीं किया गया। खेल प्रमाण पत्रों में खेला किया गया और फर्जी प्रमाणपत्रों तक को नंबर दे दिए गए। चहेतों को जिला फुटबॉल लीग के एक ही साल के कई सर्टिफिकेट के नंबर दिए गए जबकि लीग तो साल में एक ही बार होती है। जिन बरसों में लीग नहीं भी हुई, उनके नंबर भी दिए गए। अनुभव प्रमाण पत्रों में भी खेल किया गया। अनुभव के नंबर सहकारिता विभाग, सहकारी संस्थाओं व सहकारी परियोजनाओं में काम करने वालों को ही दिए जाने थे। एक वर्ष के अधिकतम दो नंबर और अधिकतम 10 नंबर दिए जाने थे, इसमें भी खेल करते हुए पात्र लोगों को नंबर नहीं दिए गए और अपात्र लोगों को नंबरों से नवाज दिया गया।
खास बात यह है कि देहरादून डीएसबी की भर्ती को रजिस्ट्रार कार्यालय ने 23 मार्च को मंजूरी दी और इसके महज कुछ घंटों में अभ्यर्थियों की जॉइनिंग भी करा दी गई, वहीं पर पिथौरागढ़ में भर्ती को रजिस्ट्रार स्तर से 21 फरवरी को मंजूरी मिली और 22 से 24 के बीच यहां जॉइनिंग भी करा दी गई।
उधम सिंह नगर में रजिस्टार ऑफिस से 21 फरवरी को मंजूरी मिलने के बाद 16 मार्च को जॉइनिंग करा दी गई। यहां शासन के ज्वाइनिंग न कराने के आदेश को भी ताक पर रखते हुए नियुक्ति दे दी गई। इस मामले में रजिस्ट्रार कार्यालय की भूमिका सवालों के घेरे में है। भर्ती को मंजूरी देने से पहले सभी अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्र मंगाए गए थे लेकिन सवाल उठ रहा है कि आखिर इतने सारे प्रमाण पत्र की जांच भी की गई? अगर हां, तो फिर गड़बड़ी पकड़ में क्यों नहीं आई ? गड़बड़ी पकड़नी ही नहीं थी तो फिर क्यों रिकॉर्ड के दौरान छेड़छाड़ की गई।